भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गंगोजमन / बुद्धिनाथ मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र |संग्रह=शिखरिणी / बुद्धिनाथ मिश्र }} [[Cate...)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र
 
|रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र
|संग्रह=शिखरिणी / बुद्धिनाथ मिश्र
+
|संग्रह=  
 
}}
 
}}
 
[[Category:नवगीत]]
 
[[Category:नवगीत]]

01:43, 12 जुलाई 2008 का अवतरण

और सब तो ठीक है
बस एक ही है डर
आँधियाँ पलने लगीं
दीपावली के घर।

हर तरफ फहरा रही
तम की उलटबाँसी
पास काबा आ रहा
धुँधला रही कासी।

मंत्रणा समभाव की
देते मुझे वे लोग
दीखता जिनको नहीं
अल्लाह में ईश्वर।

नाव जर्जर खे रही
टूटी हुई पतवार
अंग अपने ही कटे
शिवि की तरह हर बार।

हम चुकाते रह गये
गंगोजमन का मोल
रंग जमुना का चढाया
शुभ्र गंगा पर।

बँट रही मुँह देखकर
रोली कहीं गोली
मार गुड की सह रही
गणतंत्र की झोली।

बाँटते अँधे यहाँ
इतिहास की रेवडी
और गूँगे हम, बदलते
फूल से पत्थर।