भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"निकला कितना दूर / बुद्धिनाथ मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र |संग्रह=शिखरिणी / बुद्धिनाथ मिश्र }} [[Cate...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र | |रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह= |
}} | }} | ||
[[Category:नवगीत]] | [[Category:नवगीत]] |
01:43, 12 जुलाई 2008 के समय का अवतरण
पहले तुम था, आप हुआ फिर
अब हो गया हुजूर।
पीछे-पीछे चलते-चलते
निकला कितना दूर।
कद छोटा है, कुर्सी ऊँची
डैने बडे-बडे
एक महल के लिए न जाने
कितने घर उजडे
वयोवृद्ध भी ’माननीय‘
कहने को हैं मजबूर !
पूछ रहा मुझसे प्रतिक्रिया
अपने भाषण की
जिसको लिखकर पायी मैंने
कीमत राशन की
पाँव नही धरता जमीन पर
इतना हुआ गुरूर !
हर चुनाव के बाद आम
मतदाता गया छला
जिसकी पूँछ उठाकर देखा
मादा ही निकला
चुन जाने के बाद लगा
खट्टा होता अंगूर।