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"कुछ आकाश (कविता) / प्रेमशंकर शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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19:24, 27 दिसम्बर 2009 का अवतरण
पूरा करने के लिए
बचा है
कुछ आकाश
गा देता है जो जितना
हो जाता है
उतना वह पूरा
अपनी चहचह से चिड़ियाँ
बना रहीं नित नया आकाश
गाती-गुनगुनाती मेहनतकश स्त्रियाँ
आकाश के रचाव को
बढ़ा रहीं आगे
अधूरा है आकाश
कह देता है जो जितना
हो जाता है उतना वह पूरा
जीवन की आवाज़ और रंगत से ही
बनता-तनता है इसका वितान
जीवन का पानी है
जिन आँखों में
बनाने के अध्याय में
शामिल है नाम
उनका ही।