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भिक्षुक / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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11:11, 19 मई 2018
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए !
ठहरो !
अहो
मेरे
हृदय में है अमृत, मैं सींच दूँगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा।
अनिल जनविजय
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