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"घर की देवी / कुँवर दिनेश" के अवतरणों में अंतर
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+ | जागकर सबसे पहले, | ||
+ | लवे के सथ-साथ, | ||
+ | स्वागत करते | ||
+ | दर्वाज़े को खटखटाती | ||
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+ | प्रात: की बिस्तरी चाय के लिए; | ||
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+ | वह रहती है हमेशा | ||
+ | वक्त की पाबंद, | ||
+ | चाहे गर्मी हो, बर्सात हो, | ||
+ | या फिर कड़कड़ाती | ||
+ | सर्दी हो, बाहर हिमपात हो, | ||
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+ | वह करती है सेवा | ||
+ | नि:स्वार्थ भाव से, | ||
+ | भृकुटि पर | ||
+ | बिना किसी बल के; | ||
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+ | वह माँ है, पत्नी है, | ||
+ | चाची है, भाभी है, | ||
+ | बहू है―सब | ||
+ | एक ही समय पर; | ||
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+ | हर सुबह | ||
+ | होती है प्रकट वह- | ||
+ | चाय की प्यालियाँ लेकर | ||
+ | हर पलंग के पाये पर। | ||
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14:05, 29 मई 2018 के समय का अवतरण
सूर्य आ खड़ा होता है
हमारे घर की देहली पर,
उसके महाघोष के सथ ही,
हमें रज़ाई से
बाहर खदेड़ने को;
आलस्य के वशीभूत, पलंगतोड़ हम,
घोंघों के जैसे,
धँसते जाते हैं
ऊनी लिहाफ़ों में;
जागकर सबसे पहले,
लवे के सथ-साथ,
स्वागत करते
दर्वाज़े को खटखटाती
सूर्याँशुओं का;
और फिर सुनते हुए
हमारी पुकार―
प्रात: की बिस्तरी चाय के लिए;
वह रहती है हमेशा
वक्त की पाबंद,
चाहे गर्मी हो, बर्सात हो,
या फिर कड़कड़ाती
सर्दी हो, बाहर हिमपात हो,
वह करती है सेवा
नि:स्वार्थ भाव से,
भृकुटि पर
बिना किसी बल के;
वह माँ है, पत्नी है,
चाची है, भाभी है,
बहू है―सब
एक ही समय पर;
हर सुबह
होती है प्रकट वह-
चाय की प्यालियाँ लेकर
हर पलंग के पाये पर।