भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संकल्प / कुँवर दिनेश

1,668 bytes added, 08:30, 29 मई 2018
<poem>
देवता ने किया
उसके आँगन में
नर्तन।
यथासंकल्प
उसने किया अभिवादन
चढ़ाकर भेंट
कटे सिर मेंढे
और छग के,
पूर्ण हुई थी उसकी
मनोकामना, मनौती,
उसे हुआ था प्राप्त एक
पुत्र-रत्न।
 
वे बजाते रहे नगाड़े,
शहनाई और ढोल,
और बलि के धड़
वेदिका पर अभी तक
कम्पायमान थे,
ले रहे थे
अंतिम साँस,
हो रहा था―
आत्मा का शेष
स्पंदन।
 
देवता प्रसन्न थे, कहा पुजारी ने―
सिहरते हुए, कंपकंपाते स्वर में,
होकर तन्मय, दैवी
छड़ी लिये हाथ में,
और झटकारते हुए साँकल
अपनी अंसपट्टियों पर, देवता―
कर चुके थे प्रवेश
उसके शरीर में,
उसने किया समधान
बहुत से प्रश्नों का
और फिर
दैवी छाया से निकला बाहर;
 
संतुष्ट थे आतिथेय और
प्रत्येक जन।
 
यह था उन सबकी आस्था का प्रत्यय
और संशयात्माओं के लिए संश्रय।
</poem>