भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दोहा सप्तक-01 / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=रंजना वर्मा | |रचनाकार=रंजना वर्मा | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=दोहा सप्तशती / रंजना वर्मा |
}} | }} | ||
{{KKCatDoha}} | {{KKCatDoha}} |
19:04, 13 जून 2018 के समय का अवतरण
मन की आँखों देखिये, मिल जाये करतार।
नयन न देखें देखता, सब को पालनहार।।
सबकी नजर बचा सखी, आ बैठी इस ओर।
पिय की पाती हाथ में, जैसे छिपता चोर।।
लिखती फूलों से पता, पंखुरियों से नाम।
जा तू अपने घर सखी, अब तेरा क्या काम।।
रोम रोम करने लगा , भीषण हाहाकार।
अब तो आ जा साँवरे, बरसा दे रसधार।।
गीत बनी रोमावली, श्वांसों के उच्छ्वास
निःश्वासों में बाँध कर, लायी तेरे पास।।
विशद ज्ञान भण्डार में, जैसे नन्हा दीप
महिमा अद्भुत ज्ञान की, मैं मोती वो सीप।।
लिखे विधाता अहर्निश, हर प्राणी का भाग
लिखती पढ़ती मैं रहूँ, रात रात भर जाग।।