भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दोहा सप्तक-41 / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=दोह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
उजड़ी दुनियाँ बहन की, भाई बहुत उदास।
 
उजड़ी दुनियाँ बहन की, भाई बहुत उदास।
 
पत्नी बच्चे रो रहे, बची न तिनका घास।।
 
पत्नी बच्चे रो रहे, बची न तिनका घास।।
 
  
 
धक धक जलती दोपहर, गरम रख सी धूल।
 
धक धक जलती दोपहर, गरम रख सी धूल।

03:54, 14 जून 2018 के समय का अवतरण

उजड़ी दुनियाँ बहन की, भाई बहुत उदास।
पत्नी बच्चे रो रहे, बची न तिनका घास।।

धक धक जलती दोपहर, गरम रख सी धूल।
मौसम बैरी ले गया, चुन बहार के फूल।।

तपी दोपहर जेठ की, लू बन गयी बयार।
सूरज हिटलर सा हुआ, करता अत्याचार।।

भू का तल तपता तवा, धूल जले ज्यों रेत।
सूखे अम्बर के नयन, टक टक ताकें खेत।।

ग्रीष्म ग्रन्थ का कर रही, आज विमोचन धूप।
पहले तो देखा नहीं, रवि का ऐसा रूप।।

आया मौसम जेठ का, बदला नभ का रूप।
सूरज नयन तरेरता, लगी जलाने धूप।।

वृक्ष नहीं छाया नहीं, चलना हुआ मुहाल।
कंकरीट के वन हुए, अब जी का जंजाल।।