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+ | थके, ढलते रहे | ||
+ | जान पाए ये- | ||
+ | हमें जो मीत मिले, | ||
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+ | छलनी हुआ मन | ||
+ | साँझ हो गई | ||
+ | जीवन की मिठास | ||
+ | कहीं खो गई । | ||
+ | अनजाना बटोही | ||
+ | बाट में मिला | ||
+ | मन-मरुभूमि में | ||
+ | ज्यों फूल खिला | ||
+ | तप्त तन –मन को | ||
+ | उसने छुआ | ||
+ | लगता जैसे कोई | ||
+ | जादू-सा हुआ | ||
+ | सीने से लगाकर | ||
+ | ताप था हरा | ||
+ | दर्द सारे पी गया | ||
+ | बुझता दीप | ||
+ | नेह मिला ,जी गया। | ||
+ | अब तो बची | ||
+ | मीत चाह इतनी- | ||
+ | जब जाना हो | ||
+ | अगले सफ़र में | ||
+ | तेरा हाथ हो | ||
+ | सिर्फ़ मेरे हाथ में | ||
+ | माथा तु्म्हारा | ||
+ | चूमकर अधर | ||
+ | बन्द हों जाएँ, | ||
+ | मेरी आँखों में मीत | ||
+ | तेरा हो रूप | ||
+ | दूर लोक जाएँगे | ||
+ | हम तुम्हें पाएँगे । | ||
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16:37, 19 जून 2018 के समय का अवतरण
जीवन जिया
खुद को ही हमने
दण्डित किया
लगता जैसे कोई
ग़ुनाह किया ।
रस्मों के जाल फँसे
बेड़ियों बँधे
अपनों के वेष में
व्याल ही मिले
सींची जो प्यार से वो
विषबेल थी
कंटक मग बिछे
पग में चुभे
लहूलुहान हुए
चलते रहे
थके, ढलते रहे
जान पाए ये-
हमें जो मीत मिले,
छलते रहे
छलनी हुआ मन
साँझ हो गई
जीवन की मिठास
कहीं खो गई ।
अनजाना बटोही
बाट में मिला
मन-मरुभूमि में
ज्यों फूल खिला
तप्त तन –मन को
उसने छुआ
लगता जैसे कोई
जादू-सा हुआ
सीने से लगाकर
ताप था हरा
दर्द सारे पी गया
बुझता दीप
नेह मिला ,जी गया।
अब तो बची
मीत चाह इतनी-
जब जाना हो
अगले सफ़र में
तेरा हाथ हो
सिर्फ़ मेरे हाथ में
माथा तु्म्हारा
चूमकर अधर
बन्द हों जाएँ,
मेरी आँखों में मीत
तेरा हो रूप
दूर लोक जाएँगे
हम तुम्हें पाएँगे ।