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"आए नोचने / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | सींचा, पिला पसीना- | ||
+ | उगे अंकुर | ||
+ | मधुर सपनों-जैसे | ||
+ | पपोटे हँसे | ||
+ | दौड़ पड़ा था कोई | ||
+ | रौंदने उन्हें | ||
+ | पहन लोहे के बूट | ||
+ | कुचले गए | ||
+ | खुशियों के वे शिशु , | ||
+ | सारे सपने | ||
+ | जो रातों जागकर | ||
+ | पिरोए कभी | ||
+ | कल्पना के धागे में। | ||
+ | हँसे कि रोएँ? | ||
+ | सवाल ढेर सारे | ||
+ | आओ पोंछ दे | ||
+ | हम गीले नयन | ||
+ | एक दूजे के | ||
+ | गले मिल मुस्काएँ | ||
+ | नए गीत बनाएँ। | ||
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14:22, 21 जून 2018 के समय का अवतरण
आए नोचने
वे सारी ही खुशियाँ
देकर गई
जो सुरमई साँझ,
भर आँचल;
रोपी फसलों जैसी
धूप झेलते
उगाई गोड़कर
परती खेत
सींचा, पिला पसीना-
उगे अंकुर
मधुर सपनों-जैसे
पपोटे हँसे
दौड़ पड़ा था कोई
रौंदने उन्हें
पहन लोहे के बूट
कुचले गए
खुशियों के वे शिशु ,
सारे सपने
जो रातों जागकर
पिरोए कभी
कल्पना के धागे में।
हँसे कि रोएँ?
सवाल ढेर सारे
आओ पोंछ दे
हम गीले नयन
एक दूजे के
गले मिल मुस्काएँ
नए गीत बनाएँ।
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