भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आए नोचने / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
  
 +
'''आए नोचने'''
 +
वे सारी ही खुशियाँ
 +
देकर गई
 +
जो सुरमई साँझ,
 +
भर आँचल;
 +
रोपी फसलों जैसी
 +
धूप झेलते
 +
उगाई गोड़कर
 +
परती खेत
 +
सींचा, पिला पसीना-
 +
उगे अंकुर
 +
मधुर सपनों-जैसे
 +
पपोटे हँसे
 +
दौड़ पड़ा था कोई
 +
रौंदने उन्हें
 +
पहन लोहे के बूट
 +
कुचले गए
 +
खुशियों के वे  शिशु ,
 +
सारे सपने
 +
जो रातों जागकर
 +
पिरोए कभी
 +
कल्पना के धागे में।
 +
हँसे कि रोएँ?
 +
सवाल ढेर सारे
 +
आओ पोंछ दे
 +
हम गीले नयन
 +
एक दूजे के
 +
गले मिल मुस्काएँ
 +
नए गीत बनाएँ।
 
-0-
 
-0-
 
</poem>
 
</poem>

14:22, 21 जून 2018 के समय का अवतरण


आए नोचने
वे सारी ही खुशियाँ
देकर गई
जो सुरमई साँझ,
भर आँचल;
रोपी फसलों जैसी
धूप झेलते
उगाई गोड़कर
परती खेत
सींचा, पिला पसीना-
उगे अंकुर
मधुर सपनों-जैसे
पपोटे हँसे
दौड़ पड़ा था कोई
रौंदने उन्हें
पहन लोहे के बूट
कुचले गए
खुशियों के वे शिशु ,
सारे सपने
जो रातों जागकर
पिरोए कभी
कल्पना के धागे में।
हँसे कि रोएँ?
सवाल ढेर सारे
आओ पोंछ दे
हम गीले नयन
एक दूजे के
गले मिल मुस्काएँ
नए गीत बनाएँ।
-0-