भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम आई / रंजन कुमार झा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> तुम आई...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
तुम आईं जीने की आशा लिए हुए ज्यों आँचल में | तुम आईं जीने की आशा लिए हुए ज्यों आँचल में | ||
जैसे काले मेघ बरसने आन पड़े हों मरुथल में | जैसे काले मेघ बरसने आन पड़े हों मरुथल में | ||
− | खुशियों से | + | खुशियों से भींगी आँखों ने गालों को मझधार किया |
</poem> | </poem> |
18:33, 1 अगस्त 2018 का अवतरण
तुम आईं, गीतों ने जैसे फिर से मधुर शृंगार किया
मुग्ध नयन से कविताओं ने कवि को चूमा,प्यार किया
तुम आईं तो मन-आँगन की महक उठी यह फुलवारी
गेहूँ-सरसों की खेतों की चहक उठी क्यारी-क्यारी
ऋतु वसंत ने बौराए उन फूलों से अभिसार किया
शब्दों को हैं प्राण मिल गए, मिली काव्य को है काया
कलम हो रहे मतवाले, छंदों ने गान मधुर गाया
गजलों ने फिर सधे सुरों से जैसे रूप सँवार लिया
तुम आईं जीने की आशा लिए हुए ज्यों आँचल में
जैसे काले मेघ बरसने आन पड़े हों मरुथल में
खुशियों से भींगी आँखों ने गालों को मझधार किया