भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्राण सींचती / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 23: पंक्ति 23:
 
तुम्हारे लिए ही मैं
 
तुम्हारे लिए ही मैं
 
दुआएँ माँगूँ ।
 
दुआएँ माँगूँ ।
 +
5
 +
अंक में भरो
 +
उलझी नेह -डोर
 +
सुलझा भी दो।
 +
6
 +
प्राण अटके
 +
तुम न मिल सके
 +
हम भटके।
  
 
</poem>
 
</poem>

02:03, 21 अगस्त 2018 का अवतरण


1
प्राण सींचती
सामगान -सी वाणी
सद्यस्नाता- सी।
2
नश्वर काया
तुम्हारी मोहमाया
बाँधे है मुझे।
3
आँसू तुम्हारे
भिगोएँ मेरा सीना
मैं बड़भागी।
4
रातों में जागूँ
तुम्हारे लिए ही मैं
दुआएँ माँगूँ ।
5
अंक में भरो
उलझी नेह -डोर
सुलझा भी दो।
6
प्राण अटके
तुम न मिल सके
हम भटके।