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"मुलाक़ात / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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ले आई नमकपारे
 
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वो खिली-खिली थी
 
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हँसकर कहा — खाओ।
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मैंने कहा —  नहीं,
 
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भूख नहीं है, ना... रे..
 
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पूछा उसने —  
 
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कैसी गुज़र रही है?
 
कैसी गुज़र रही है?

17:02, 5 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

वो मुझे देख
मुस्काई
बोली — आओ
पीढ़े पर बैठाकर मुझे
ले आई नमकपारे
वो खिली-खिली थी
हँसकर कहा — खाओ
मैंने कहा — नहीं,
भूख नहीं है, ना... रे..

पूछा उसने —
कैसी गुज़र रही है?
मैंने कहा —
वर्ष, मास बीते
दिन बीते
पल-छिन ये खारे
बीत गया सागर-सा जीवन
पहुँचा साँझ-सकारे।