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"अल्बाट्रोस / बाद्लेयर / अभिषेक 'आर्जव'" के अवतरणों में अंतर

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घिसटते हैं नाव के ओर छोर पर,
 
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यह मजबूर, हास्यास्पद यात्री, पड़ा है जो
 
विकृत और अक्षम, कभी हुआ करता था कितना भव्य !
 
विकृत और अक्षम, कभी हुआ करता था कितना भव्य !
 
एक नाविक कोंचता है चोंच में लकड़ी से,
 
एक नाविक कोंचता है चोंच में लकड़ी से,

17:45, 15 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण

अक्सर ऊब रहे नाविक पकड़ लेते हैं
समुद्र के महान पक्षी अल्बाट्रोस को,
नीले आकाश का वह सौम्य यात्री
गूढ़ समुद्र में पीछा करता है जहाजों का !

नाविक जब पकड़ लेते हैं उसे, घायल-त्रस्त,
ये व्योम-नृप, पड़े यहां वहां जहाज के तख्त पर,
लिये दृढ़-महान पंख, हो चुके बेकार-सी पतवार-से
घिसटते हैं नाव के ओर छोर पर,

यह मजबूर, हास्यास्पद यात्री, पड़ा है जो
विकृत और अक्षम, कभी हुआ करता था कितना भव्य !
एक नाविक कोंचता है चोंच में लकड़ी से,
दूसरा हंसता है उसकी लड़खड़ाती चाल पर !

कवि भी ! बादलॊं का सहयात्री है ! जोहता तूफान भरे दिन,
तीरन्दाजों पर करता उपहास, किन्तु जमीन पर चीखती भीड़ के बीच
वह चल भी नहीं सकता, उसके दृढ़-विशाल पंख
रास्ते की रुकावट बनते हैं !

अंगरेज़ी से अनुवाद : अभिषेक 'आर्जव'