भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आकुल बाहें / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
[[Category:हाइकु]] | [[Category:हाइकु]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | 21 | |
− | + | मन सिंधड़ा | |
+ | झेल नुकीले बाण | ||
+ | सुलगा तन । | ||
+ | 22 | ||
+ | गाँठ में न थी | ||
+ | कोई दुर्भावना तो | ||
+ | दण्डित हुए। | ||
+ | 23 | ||
+ | प्राण विकल | ||
+ | ढूँढा तुम्हें कितना | ||
+ | छुपे दिल में। | ||
+ | 24 | ||
+ | '''आकुल बाहें''' | ||
+ | कभी तो बँध जाओ | ||
+ | आलिंगन में। | ||
+ | 25 | ||
+ | धरा नर्तित | ||
+ | सिंधु -घन गरजे | ||
+ | बाहों में ले लो। | ||
+ | 26 | ||
+ | कोई न जाने | ||
+ | तुम मेरे हो कौन | ||
+ | ध्रुव तारा हो। | ||
+ | 27 | ||
+ | तुम हो गति | ||
+ | तुम प्राणों की यति | ||
+ | रोम ये बाँचे। | ||
+ | 28 | ||
+ | होंठों ने छुआ | ||
+ | साँसें बनी थी दुआ | ||
+ | नैनों ने जपा। | ||
+ | 29 | ||
+ | आ जाओ द्वारे | ||
+ | भोर से शाम तक | ||
+ | प्राण ये पुकारें। | ||
+ | 30 | ||
+ | खुशबू आई | ||
+ | महकी गली गली | ||
+ | जूही की कली । | ||
</poem> | </poem> |
07:48, 13 नवम्बर 2018 के समय का अवतरण
21
मन सिंधड़ा
झेल नुकीले बाण
सुलगा तन ।
22
गाँठ में न थी
कोई दुर्भावना तो
दण्डित हुए।
23
प्राण विकल
ढूँढा तुम्हें कितना
छुपे दिल में।
24
आकुल बाहें
कभी तो बँध जाओ
आलिंगन में।
25
धरा नर्तित
सिंधु -घन गरजे
बाहों में ले लो।
26
कोई न जाने
तुम मेरे हो कौन
ध्रुव तारा हो।
27
तुम हो गति
तुम प्राणों की यति
रोम ये बाँचे।
28
होंठों ने छुआ
साँसें बनी थी दुआ
नैनों ने जपा।
29
आ जाओ द्वारे
भोर से शाम तक
प्राण ये पुकारें।
30
खुशबू आई
महकी गली गली
जूही की कली ।