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"अगरू गन्ध रोई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | सपना टूटा, | ||
+ | निंदिया ऐसी उड़ी | ||
+ | उम्र भर न आई। | ||
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+ | अगरू गन्ध रोई | ||
+ | मन्त्र सुबके | ||
+ | उदासी -भरा पर्व | ||
+ | अश्रु का आचमन। | ||
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+ | प्राण खपाए | ||
+ | बरसों व्रत -पूजा | ||
+ | करके थके | ||
+ | आरती की थाली थी | ||
+ | लात मार पटकी। | ||
+ | 6 | ||
+ | प्राणों में जो था | ||
+ | उसे पा नहीं सके | ||
+ | द्वार गैर के | ||
+ | कभी जा नहीं सके, | ||
+ | प्रारब्ध में यही लिखा। | ||
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17:12, 4 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
1
साँझ हो गई
बन -बन भटकी
भूखी व प्यासी
रूपसी बंजारिन
पिया ! कद्र न जानी।
2
दीप जलाए
अँधियारे पथ में
दिए उजाले,
सदा हाथ जलाए
पाए दिल पे छाले।
3
आँख लगी थी
सुनी हूक प्रिया की
सपना टूटा,
निंदिया ऐसी उड़ी
उम्र भर न आई।
4
आहत मन
अगरू गन्ध रोई
मन्त्र सुबके
उदासी -भरा पर्व
अश्रु का आचमन।
5
प्राण खपाए
बरसों व्रत -पूजा
करके थके
आरती की थाली थी
लात मार पटकी।
6
प्राणों में जो था
उसे पा नहीं सके
द्वार गैर के
कभी जा नहीं सके,
प्रारब्ध में यही लिखा।