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"आँकड़ों से पीटना सरकार को महंगा पड़ा / विनय कुमार" के अवतरणों में अंतर
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जागने की सीख लेकर सूर्य खिड़की पर खड़ा।<BR><BR> | जागने की सीख लेकर सूर्य खिड़की पर खड़ा।<BR><BR> | ||
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फिर समय के पाँव में इतिहास का काँटा गड़ा।<BR><BR> | फिर समय के पाँव में इतिहास का काँटा गड़ा।<BR><BR> | ||
− | यह सडंधों का शहर है राज नकटों का यहाँ | + | यह सडंधों का शहर है राज नकटों का यहाँ <BR> |
कहें किससे नाकवाले क्या सड़ा कितना सड़ा।<BR><BR> | कहें किससे नाकवाले क्या सड़ा कितना सड़ा।<BR><BR> | ||
− | तुम उठो, तुम भी उठो इन आँधियों में दम भरो | + | तुम उठो, तुम भी उठो इन आँधियों में दम भरो<BR> |
साफ़ होगा यूँ नहीं उन क़ातिलों का सूपड़ा।<BR><BR> | साफ़ होगा यूँ नहीं उन क़ातिलों का सूपड़ा।<BR><BR> |
18:50, 29 जुलाई 2008 के समय का अवतरण
आँकड़ों से पीटना सरकार को महंगा पड़ा।
आँकड़ों को पीट बैठा आँकड़ों का आँकड़ा।
एक में बासी हुआ जल, एक में ताज़ा रहा
एक चांदी की सुराही, एक मिट्टी का घड़ा।
आईना बाज़ार का कैसे नहीं अच्छा लगे
अक्स देता है बिकाऊ और असली से बड़ा।
धूप देती ही नहीं है जागने का हौसला
जागने की सीख लेकर सूर्य खिड़की पर खड़ा।
ज़ख्म बदला कोख में फिर कोख से निकली ग़ज़ल
फिर समय के पाँव में इतिहास का काँटा गड़ा।
यह सडंधों का शहर है राज नकटों का यहाँ
कहें किससे नाकवाले क्या सड़ा कितना सड़ा।
तुम उठो, तुम भी उठो इन आँधियों में दम भरो
साफ़ होगा यूँ नहीं उन क़ातिलों का सूपड़ा।