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"अनुरोध!/ राजराजेश्वरी देवी ‘नलिनी’" के अवतरणों में अंतर

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मानस-मधुवन मंे आया है सजनि! आज वेदना-वसंत।
 
विपुल व्यथा की सकरुण सुषमा छाय रही है आज अनंत॥
 
करुणा-कोकिल सुना ही है अपना विह्वल विकल विहाग।
 
नयन-कली की मृदु प्याली में भरा हुआ है अश्रु-पराग॥
 
चलता है उच्छ्वास-मलय नैराश्यों की सौरभ के साथ।
 
ढुलका रहा विषाद हृदय की हाला भर-भर दोनों हाथ॥
 
अन्तर के छाले पलाश वन-सम शोभित हैं अरुण अपार।
 
व्याप्त हो रहा है मधुमय पीड़ाओं के वैभव का भार॥
 
  
कितना सुन्दर कुसुमाकर का विश्व-कुंज में आजाना।
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मलयज-शीतलता भार लिये, नव-कलिका सा मृदु प्यार लिये।
पर कितना मादक मेरे मधुवन में उसका मुसकाना॥
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मम आशा की मधुमय कलियाँ बनकर बसंत विकसा जाना॥
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बासंती सी मृदु सुषमा ले पुप्पांे सी मधु लालिमा लिये।
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मम सूखे जीवन उपवन में मधु-सीकर बन के बरस जाना॥
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शुचि सरस सुकोमल भावों की, कालिन्दी कलित कलोलमयी-
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सरस सुकोलम भावों की, कालिन्दी कलित कलोलमयी-
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बनकर मेरे कल्पना-देश में, देव! प्रवाहित हो जाना।
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नव वीणा की झंकार लिये, मृदु अतीत गौरव-गान लिये-
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वह भूला मोहक मधुर गान, बन जीवन-सार सुना जाना॥
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शुचि स्वर्ण का विभव लिये सुख का अक्षय आभास लिये-
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मेरी अलसाई पलकों पर तुम चिरनिद्रा बन छा जाना।
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स्वर्गिक अनन्त सौंन्दर्य्य लिये, क्रीड़ा का हास-विलास लिये-
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कोमल अलसित-सुषमा-लज्जित-निज मंजु रूप दिखला जाना॥
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वरदानों का उपहार लिये, आशीष-सुधा की धार लिये-
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मेरे हृद््-मंदिर में आकर आराध्य! सुशोभित हो जाना।
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मुसकानों का संसार लिये, आनन्दमयी झंकार लिये-
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पीड़ा से पागल प्राणों को, प्रिय! आकर आह हँसा जाना॥
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कमनीय कलित सुविकाश लिये, ऊषा-सा अरुण प्रकाश लिये-
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बनकर सुप्रभा-सौभाग्य सूर्य्य ‘नलिनी’ का हृदय खिला जाना।
  
 
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06:15, 29 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण



मलयज-शीतलता भार लिये, नव-कलिका सा मृदु प्यार लिये।
मम आशा की मधुमय कलियाँ बनकर बसंत विकसा जाना॥
बासंती सी मृदु सुषमा ले पुप्पांे सी मधु लालिमा लिये।
मम सूखे जीवन उपवन में मधु-सीकर बन के बरस जाना॥

शुचि सरस सुकोमल भावों की, कालिन्दी कलित कलोलमयी-
सरस सुकोलम भावों की, कालिन्दी कलित कलोलमयी-
बनकर मेरे कल्पना-देश में, देव! प्रवाहित हो जाना।
नव वीणा की झंकार लिये, मृदु अतीत गौरव-गान लिये-
वह भूला मोहक मधुर गान, बन जीवन-सार सुना जाना॥

शुचि स्वर्ण का विभव लिये सुख का अक्षय आभास लिये-
मेरी अलसाई पलकों पर तुम चिरनिद्रा बन छा जाना।
स्वर्गिक अनन्त सौंन्दर्य्य लिये, क्रीड़ा का हास-विलास लिये-
कोमल अलसित-सुषमा-लज्जित-निज मंजु रूप दिखला जाना॥

वरदानों का उपहार लिये, आशीष-सुधा की धार लिये-
मेरे हृद््-मंदिर में आकर आराध्य! सुशोभित हो जाना।
मुसकानों का संसार लिये, आनन्दमयी झंकार लिये-
पीड़ा से पागल प्राणों को, प्रिय! आकर आह हँसा जाना॥

कमनीय कलित सुविकाश लिये, ऊषा-सा अरुण प्रकाश लिये-
बनकर सुप्रभा-सौभाग्य सूर्य्य ‘नलिनी’ का हृदय खिला जाना।