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22:11, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण

एक खालीपन है
जो परेशान करता है
रात दिन

यह
उसके होने की खुशी से रौशन
खालीपन नहीं है
जिसमें मैं हवा सी हल्की हो
भागती-दौड़ती
उसे भरती रह सकती हूं

यह
उसके ना होने से पैदा
एक ठोस और अंधेरा खालीपन है
जो अपने भीतर
धंसने नहीं देता मुझे

इस खालीपन को
अपनी हंसी से
गुंजा नहीं सकती मैं

इसमें तो
मेरी रूलाई की भी
रसाई नहीं

यह
ना हंसने देता है
ना रोने
बस
एक अनंत उदासी में
गर्क होने को
छोड़ जाता है
तन्हा ...