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"दीवाली तेरी यादों की / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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पीड़ा का तूफ़ान समेटे
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जलती फुलझड़ियों सा हँसना
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चरखी सा घर भर में फिरना
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रह-रह कर याद आता मुझको
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तेरे गुस्से का बम फटना
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अब तो घर के हर कोने में
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मिलती केवल
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तन्हाई है
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फीकी-फीकी लगती गुझिया
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रोते घर, आँगन, देहरी सब
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दीपक चुभते हैं आँखों में
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झालर साँपों सी डँसती अब
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रॉकेट चीख रहा है मुझपर
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छुरछुरिया तक
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चिल्लाई है
 
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22:16, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

दीवाली तेरी यादों की
फिर आई है
फिर आई है

विरह-व्यथा में भिगो-डुबो कर
रखी वर्ष भर मन की बाती
यादों की माचिस से जलकर
भभक उठी फिर मेरी छाती

पीड़ा का तूफ़ान समेटे
रात अँधेरी
घिर आई है

जलती फुलझड़ियों सा हँसना
चरखी सा घर भर में फिरना
रह-रह कर याद आता मुझको
तेरे गुस्से का बम फटना

अब तो घर के हर कोने में
मिलती केवल
तन्हाई है

फीकी-फीकी लगती गुझिया
रोते घर, आँगन, देहरी सब
दीपक चुभते हैं आँखों में
झालर साँपों सी डँसती अब

रॉकेट चीख रहा है मुझपर
छुरछुरिया तक
चिल्लाई है