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"कि अपना ख़ुदा होना / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर

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कभी भूलता नहीं तू...
 
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22:44, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

ग़ुलामों की
ज़ुबान नही होती
सपने नही होते
इश्क तो दूर
जीने की
बात नही होती
मैं कैसे भूल जाऊँ
अपनी ग़ुलामी
कि अपना ख़ुदा होना
कभी भूलता नहीं तू...