भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुझे पानी दो / गुन्नार एकिलोफ़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=मुश्किल से खुली एक खिड़की / गुन्नार एकिलोफ़ | |संग्रह=मुश्किल से खुली एक खिड़की / गुन्नार एकिलोफ़ | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
<Poem> | <Poem> | ||
मुझे पानी दो | मुझे पानी दो |
16:19, 13 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण
मुझे पानी दो
पीने के लिए नहीं
वरन धोने के लिए अपना अंतस
मैं नहीं मांगता हूँ तेल
मुझे चाहिए ताज़ा पानी
देखो किस कदर बढ़ रहे हैं कीड़े मेरी काँख में,
जांघ पर मेरी बाईं ओर
और जांघ पर दाईं
और दोनों के बीच
फफदते हैं फोड़े
मैं उतार सकता हूँ अपने पाँव के तल्लों की खाल,
मुझे धोने के लिए अपना अंतस अपना जल दो
तेल नहीं
नकारता हूँ मैं तुम्हारा तेल
दो मुझे पानी ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधीर सक्सेना