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"कुदबुदाती बकरियाँ / ओम नीरव" के अवतरणों में अंतर
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देख मिमियाँ कर उछलना भा गया उनका बहुत, | देख मिमियाँ कर उछलना भा गया उनका बहुत, | ||
− | जब मिली नीरव ललक थूथन उठाती बकरियाँ। | + | जब मिली 'नीरव' ललक थूथन उठाती बकरियाँ। |
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11:39, 20 जून 2020 के समय का अवतरण
जो मिला वह चर रही हैं कुदबुदाती बकरियाँ।
जब जियो सुख से जियो सबको बताती बकरियाँ।
शुद्ध शाकाहार करती हैं अहिंसा-गामिनी,
हिंसकों को याद बापू की दिलाती बकरियाँ।
रक्त चमड़ी मांस कुछ भी छोड़ता मानव नहीं,
दूध उसको भी पिला जीवन बचाती बकरियाँ।
लाडले को हो गया डेंगू तभी से हर गली,
खोजता हूँ दूध की खातिर पल्हाती बकरियाँ।
आदमी से कम नहीं होती पचाने में निपुण,
यदि पचा सीमेंट-सरिया काश, पाती बकरियाँ।
आदमी की ख़ाल में हैं रक्त-प्यासे भेड़िए,
व्यर्थ में ही ख़ैर बेटों की मनाती बकरियाँ।
देख मिमियाँ कर उछलना भा गया उनका बहुत,
जब मिली 'नीरव' ललक थूथन उठाती बकरियाँ।
आधार छंद-गीतिका
मापनी-गालगागा गालगागा-गालगागा गालगा