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"लौटना नहीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | लंका समझ | ||
+ | जलाया था जो घर | ||
+ | मेरा था वह । | ||
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+ | वाद-विवाद | ||
+ | अधमरे संवाद | ||
+ | जीवन-चर्या । | ||
+ | 100 | ||
+ | पूजा निष्काम | ||
+ | कलह दिन-रात | ||
+ | नहीं विराम । | ||
+ | 101 | ||
+ | शास्त्रों का सार | ||
+ | जग के सारे पाश | ||
+ | हमने रचे । | ||
+ | 102 | ||
+ | नेकी न कर | ||
+ | लोग मार डालेंगे | ||
+ | ख़ुदा से डर । | ||
+ | 103 | ||
+ | उजड़ा घर | ||
+ | सर्प -जैसी फुत्कार | ||
+ | काँपी दीवार । | ||
+ | 104 | ||
+ | चुभी आँखों में | ||
+ | कल्याण- कामनाएँ | ||
+ | अंधड़ हेरे । | ||
+ | 105 | ||
+ | '''लौटना नहीं''' | ||
+ | बेघर -बेसहारा | ||
+ | खुला अम्बर । | ||
+ | 106 | ||
+ | रिश्तों का तौंक | ||
+ | दिन -रात टीसता | ||
+ | गले में फँसा। | ||
+ | 107 | ||
+ | बिछे अंगार | ||
+ | चला हूँ नंगे पाँवा | ||
+ | कोई न ठौर । | ||
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02:19, 18 मार्च 2019 का अवतरण
97
घृणा के बीज
बीजते दिन-रात
प्रेम न उगे।
98
लंका समझ
जलाया था जो घर
मेरा था वह ।
99
वाद-विवाद
अधमरे संवाद
जीवन-चर्या ।
100
पूजा निष्काम
कलह दिन-रात
नहीं विराम ।
101
शास्त्रों का सार
जग के सारे पाश
हमने रचे ।
102
नेकी न कर
लोग मार डालेंगे
ख़ुदा से डर ।
103
उजड़ा घर
सर्प -जैसी फुत्कार
काँपी दीवार ।
104
चुभी आँखों में
कल्याण- कामनाएँ
अंधड़ हेरे ।
105
लौटना नहीं
बेघर -बेसहारा
खुला अम्बर ।
106
रिश्तों का तौंक
दिन -रात टीसता
गले में फँसा।
107
बिछे अंगार
चला हूँ नंगे पाँवा
कोई न ठौर ।
-0-