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"ललचाई आँखिन ते बेटवा / बोली बानी / जगदीश पीयूष" के अवतरणों में अंतर

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07:42, 24 मार्च 2019 के समय का अवतरण

ललचाई आँखिन ते बेटवा
द्याखै गुड़ कै पारी
ऊपर ते मिठबोलना बनिया
टेंटे धरे दुधारी

खाय रहा कोउ दाख छोहारा
कोऊ फ्याँटै गड्डी
लरिकउना भूखन के मारे
ख्यालति नहीं कबड्डी

मरै जियै के साथी
ट्वाला मा अब नहीं रहे
अमराइन पर रोजु चलति है
अब स्वारथ कै आरी

हम बरधन-घोड़वन की नाँई
मेहनति करति रहेन
जोर-जुलुम मौसम के चाबुक
अब लौ खूब सहेन

हाँथ-पाँव सब दगा दइ रहे
अब तौ ताब नहीं
अइसे-मन मनचले परोसी
हम पर किहे सवारी

नाम डकैती मा लिखवाइनि
जब ते भइया क्यार
सच्चाई का मिल न सका
तब कोउ जमानतदार

रस्ता बदल लेति हैं
दुरिही ते अब नातेदार
दुआ बंदगिउ करै न कोऊ
है ई बिधि लाचारी