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"जाने न कोई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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चारों तरफ | चारों तरफ | ||
है घनेरा जंगल | है घनेरा जंगल | ||
− | कहाँ हो | + | कहाँ हो तुम! |
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प्यास बुझेगी | प्यास बुझेगी | ||
मरुथल में कैसे | मरुथल में कैसे | ||
− | साथ न | + | साथ न तुम! |
107 | 107 | ||
अँजुरी भर | अँजुरी भर | ||
पिलादो प्रेमजल | पिलादो प्रेमजल | ||
− | प्राण कण्ठ | + | प्राण कण्ठ में! |
108 | 108 | ||
शब्दों से परे | शब्दों से परे | ||
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पुकारूँ कैसे ! | पुकारूँ कैसे ! | ||
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− | भूलूँ कैसे मैं | + | '''भूलूँ कैसे मैं |
तेरा वो सम्मोहन | तेरा वो सम्मोहन | ||
− | कसे बन्धन। | + | कसे बन्धन।''' |
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तन माटी का | तन माटी का | ||
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अरसा हुआ देखे | अरसा हुआ देखे | ||
छिना है चैन। | छिना है चैन। | ||
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+ | देह नश्वर | ||
+ | देही, प्रेम अमर | ||
+ | मिलेंगे दोनों। | ||
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21:55, 5 मई 2019 का अवतरण
101
बिछुड़े कैसे
सिंधु से जलधारा
प्यार अपार।
102
जाने न कोई
कथाएँ जो लिखी थीं
अश्रु -डुबोई।
103
गोद है भीगी
प्रलय बन बहे
आँसू बावरे।
104
घिरा आग में
व्याकुल हिरना -सा
खोजूँ तुमको।
105
चारों तरफ
है घनेरा जंगल
कहाँ हो तुम!
106
प्यास बुझेगी
मरुथल में कैसे
साथ न तुम!
107
अँजुरी भर
पिलादो प्रेमजल
प्राण कण्ठ में!
108
शब्दों से परे
सारे ही सम्बोधन
पुकारूँ कैसे !
109
भूलूँ कैसे मैं
तेरा वो सम्मोहन
कसे बन्धन।
110
तन माटी का
मन का क्या उपाय
मन में तुम।
111
तरसे नैन
अरसा हुआ देखे
छिना है चैन।
112
देह नश्वर
देही, प्रेम अमर
मिलेंगे दोनों।
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