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"पहाड़ की नारी / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | बुद्धि-विवेक शारीरिक-क्षमता तू असीम बलशाली | ||
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+ | रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी ! | ||
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+ | समर्पित करती कविता तुमको, शब्दों की ये फुलवारी | ||
+ | रुकती न कभी थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी ! | ||
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02:14, 29 जून 2019 के समय का अवतरण
लोहे का सिर और वज्र कमर संघर्ष तेरा बलशाली
रुकती न कभी थकती न कभी तू हे पहाड़ की नारी !
तू पहाड़ पर चलती है, हौसले लिये पहाड़ी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !
चंडी-सी चमकती चलती है, जीवन संग्राम है जारी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !
एक-एक हुनर तेरे समझो सौ-सौ पुरुषों पर भारी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !
बुद्धि-विवेक शारीरिक-क्षमता तू असीम बलशाली
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !
सैनिक की मैया, पत्नी-बहिन मैं तुम पर बलिहारी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !
समर्पित करती कविता तुमको, शब्दों की ये फुलवारी
रुकती न कभी थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !