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"पृथ्वी पर दिखी पाती. / विनोद विट्ठल" के अवतरणों में अंतर

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कहीं कुछ था हर जगह, नए वर्ण-सा 
 
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जिससे भाषा भरी जानी थी 
 
जिससे भाषा भरी जानी थी 

10:18, 9 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

(बिटिया पाती के जन्म पर लिखी कविता)

फूलों ने माँगी होगी एक नई प्रजाति 
दूब रूठी होगी तलुओं के नए जोड़े के लिए 
पानी ने नई प्यास के लिए अनशन किया होगा 
मुझे नई बांसुरी दो, हवा ने कहा होगा 
तभी; एक नए वाद्य-यन्त्र की तरह 
पृथ्वी पर दिखी पाती ।

धरती के सितार पर तार की तरह 
पक्षियों के कोरस में एक स्वर ज़्यादा था 
एक नया रँग नामकरण की प्रतीक्षा में था 
बढ़ा हुआ आकार था चान्द का 
गिनती से ज़्यादा थे तारे 
कहीं कुछ था हर जगह, नए वर्ण-सा 
जिससे भाषा भरी जानी थी 
तभी; एक नए प्रेम की तरह 
पृथ्वी पर दिखी पाती ।

पौधों के पास अपना उल्लास था 
पेड़ों और तितलियों की तरह 
आकाश से धरती जो फूटी थी एक अण्डे की तरह 
तभी; एक नई नदी की तरह 
पृथ्वी पर दिखी पाती ।