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"यौम-ए-मई / हबीब जालिब" के अवतरणों में अंतर
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न ज़िल्लत के साए में बच्चे पलेंगे | न ज़िल्लत के साए में बच्चे पलेंगे | ||
न हाथ अपने क़िस्मत के हाथों मलेंगे | न हाथ अपने क़िस्मत के हाथों मलेंगे | ||
− | मुसावात के दीप घर घर जलेंगे | + | मुसावात के दीप घर-घर जलेंगे |
सब अहल-ए-वतन सर उठा के चलेंगे | सब अहल-ए-वतन सर उठा के चलेंगे | ||
− | न होगी कभी | + | न होगी कभी ज़िन्दगी वक़्फ़-ए-मातम |
फ़ज़ाओं में लहराएगा सुर्ख़ परचम | फ़ज़ाओं में लहराएगा सुर्ख़ परचम | ||
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15:17, 12 अगस्त 2019 के समय का अवतरण
सदा आ रही है मरे दिल से पैहम
कि होगा हर इक दुश्मन-ए-जाँ का सर ख़म
नहीं है निज़ाम-ए-हलाकत में कुछ दम
ज़रूरत है इनसान की अम्न-ए-आलम
फ़ज़ाओं में लहराएगा सुर्ख़ परचम
सदा आ रही है मिरे दिल से पैहम
न ज़िल्लत के साए में बच्चे पलेंगे
न हाथ अपने क़िस्मत के हाथों मलेंगे
मुसावात के दीप घर-घर जलेंगे
सब अहल-ए-वतन सर उठा के चलेंगे
न होगी कभी ज़िन्दगी वक़्फ़-ए-मातम
फ़ज़ाओं में लहराएगा सुर्ख़ परचम