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"आँच न आए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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श्रम का जल
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मन को भाए
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हाथ न आए ।
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तो सुख राई भर,
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वो भी बिखरे।
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बन्धन काँटूँ
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दूर पहुँच सकूँ
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दु:ख भी बाँटू।
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07:41, 8 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण

31
बहे समीर
मन हुआ अधीर
कहाँ हो तुम ?
32
बाँटती हवा
घर-घर खुशबू
करे न भेद ।
33
मन्द पवन
पुलकित करती
तन व मन ।
34
सिसकी हवा
पहाड़ों से उतरी
रोया है कोई !
35
सोचता मन -
ले तेरी ही खुशबू
बहे पवन ।
36
दो बूँद जल
पावन गंगाजल
तेरे नैन का ।
37
अँजुरी -भरा
बूँद-बूँद जो जल
नैन से ढरा ।
38
निर्मल जल
मिल गया कीच में
खुद खो गया।
39
श्रम का जल
माथे पर उभरे
मोती बनता ।
40
भले दो तन
पावन एक मन
भाई बहन !
41
आँच न आए
जीवन में कभी ज़रा
भाई की दुआ ।
42
प्यार है सच्चा
भाई बहन का ये
टूटे न धागा ।
43
मन को भाए
चाँद बसा है दूर
हाथ न आए ।
44
दु:ख- पहाड़
तो सुख राई भर,
वो भी बिखरे।
45
बन्धन काँटूँ
दूर पहुँच सकूँ
दु:ख भी बाँटू।