भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मृत्यु / ऋतु पल्लवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अकबर इलाहाबादी }} जब विकृत हो जाता है,हाड़-मांस का शरीर ...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=अकबर इलाहाबादी
+
|रचनाकार=ऋतु पल्लवी
 
}}
 
}}
 
जब विकृत हो जाता है,हाड़-मांस का शरीर  
 
जब विकृत हो जाता है,हाड़-मांस का शरीर  

08:45, 20 अगस्त 2008 का अवतरण

जब विकृत हो जाता है,हाड़-मांस का शरीर

निचुड़ा हुआ निस्सार

खाली हो जाता है

संवेदना का हर आधार..

सोख लेता है वक्त भावनाओं को,

सिखा देते हैं रिश्ते अकेले रहना (परिवार में)

अनुराग,ऊष्मा,उल्लास,ऊर्जा,गति

सबका एक-एक करके हिस्सा बाँट लेते हैं हम

और आँख बंद कर लेते हैं.

पूरे कर लेते हैं-अपने सारे सरोकार

और निरर्थकता के बोझ तले

दबा देते हैं उसके अस्तित्व को

तब वह व्यक्ति मर जाता है,अपने सारे प्रतिदान देकर

और हमारे केवल कुछ अश्रु लेकर..