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क्यों नहीं / ऋतु पल्लवी

16 bytes added, 14:07, 24 नवम्बर 2009
|रचनाकार=ऋतु पल्लवी
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नीला आकाश ,सुनहरी धूप ,हरे खेत
 
पीले पत्ते ही क्यों उपमान बनते हैं !
 
कभी बेरंग रेगिस्तान में क्यों
 
गुलाबी फूलों की बात नहीं होती ?
 
रूप की रोशनी ,तारों की रिमझिम,
 
फूलों की शबनमी को ही क्यों सराहते हैं लोग!
 
कभी अनमनी अमावस की रात में क्यों
 
चाँद की चांदनी नहीं सजती ?
 
नेताओं के नारे ,पत्रकारों के व्यक्तव्य
 
कवि के भवितव्य ही क्यों सजते हैं अखबारों में!
 
कभी आम आदमी की संवेदना का सम्पादन
 
क्यों नहीं छपता इन प्रसारों में ?
 
मैं तुम्हें प्रेम भरी पाती ,संवेदनशील कविता,सन्देश,आवेश
 
या आक्रोश कुछ भी न भेजूं!
 
फिर भी मुखरित हो जाए मेरी हर बात
 
कभी क्यों नहीं होता ऐसा शब्दों पर,मौन का आघात..?
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