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"अब ख़ौफ़ भी कोई नहीं, तूफ़ां यहाँ कोई नहीं / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर
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+ | क्या ‘नूर’ बज़्मे-नाज़ में तस्लीम सब करने लगे? | ||
+ | तुम-सा हसीं कोई नहीं, तुम-सा जवां कोई नहीं। | ||
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13:42, 27 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण
अब ख़ौफ़ भी कोई नहीं, तूफ़ां यहाँ कोई नहीं।
तेरा मकां है हर जगह, मेरा मकां कोई नहीं।
बहके सवालों में रखा, कुछ भी नहीं दिन-रात के,
मुझको पता ये चल गया, मेरा यहाँ कोई नहीं।
कैसे यक़ीं ले आए तुम ख़ुद सोच में डूबा हूँ मैं?
तुमने सुनी जो भी वहाँ वो दास्तां कोई नहीं।
तुहमत लगाई जा रही बेवज्ह की किरदार पर,
हमने दिया इजलास में ऐसा बयां कोई नहीं।
असली समां वो लूट कर महफ़िल से ग़ायब हो गए,
जो दिख रही हमको वहाँ वो कहकशां कोई नहीं।
तारीख़ में तक़दीर का अपनी सिकन्दर जो बना,
मैं सच कहूँ उससे बड़ा था बदगुमां कोई नहीं।
क्या ‘नूर’ बज़्मे-नाज़ में तस्लीम सब करने लगे?
तुम-सा हसीं कोई नहीं, तुम-सा जवां कोई नहीं।