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"दीप दान / केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

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कल्ले फोड़े हैं,
 
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एक दिया वहाँ जहाँ उस नन्हें गेंदे ने
 
एक दिया वहाँ जहाँ उस नन्हें गेंदे ने
अभी-अभी पहली ही पंखड़ी बस
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खोली है,
 
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एक दिया उस लौकी के नीचे
 
एक दिया उस लौकी के नीचे
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दिखता है,
 
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एक दिया वहाँ जहाँ अभी-अभी धुले
 
एक दिया वहाँ जहाँ अभी-अभी धुले
नये चावल का गंधभरा पानी फैला है,
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नये चावल का गन्धभरा पानी फैला है,
एक दिया उस घर में -
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एक दिया उस घर में
जहाँ नई फसलों की गंध छटपटाती हैं,
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जहाँ नई फ़सलों की गन्ध छटपटाती हैं,
 
एक दिया उस
 
एक दिया उस
जंगले पर जिससे
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दूर नदी की नाव अक्सर दिख जाती हैं
 
दूर नदी की नाव अक्सर दिख जाती हैं
एक दिया वहाँ जहाँ झबरा
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एक दिया वहाँ, जहाँ झबरा
बँधता है,
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बन्धता है,
एक दिया वहाँ जहाँ पियरी दुहती है,
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एक दिया वहाँ, जहाँ पियरी दुहती है,
एक दिया वहाँ जहाँ अपना प्यारा
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एक दिया वहाँ, जहाँ अपना प्यारा
 
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एक दिया उस पगडंडी पर
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जो अनजाने कुहरों के पार
 
जो अनजाने कुहरों के पार
 
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आँगन कुछ कहता है,
 
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जाना, फिर जाना!
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00:28, 27 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण

जाना, फिर जाना,
उस तट पर भी जा कर दिया जला आना,
पर पहले अपना यह
आँगन कुछ कहता है,
उस उड़ते आँचल से गुड़हल की डाल
बार-बार उलझ जाती हैं,
एक दिया वहाँ भी जलाना;
जाना, फिर जाना,
एक दिया वहाँ जहाँ नई-नई दूबों ने
कल्ले फोड़े हैं,
एक दिया वहाँ जहाँ उस नन्हें गेंदे ने
अभी-अभी पहली ही पँखड़ी बस
खोली है,
एक दिया उस लौकी के नीचे
जिसकी हर लतर तुम्हें छूने को आकुल है
एक दिया वहाँ जहाँ गगरी रक्खी है,
एक दिया वहाँ जहाँ बर्तन मँजने से
गड्ढा-सा
दिखता है,
एक दिया वहाँ जहाँ अभी-अभी धुले
नये चावल का गन्धभरा पानी फैला है,
एक दिया उस घर में —
जहाँ नई फ़सलों की गन्ध छटपटाती हैं,
एक दिया उस
जँगले पर जिससे
दूर नदी की नाव अक्सर दिख जाती हैं
एक दिया वहाँ, जहाँ झबरा
बन्धता है,
एक दिया वहाँ, जहाँ पियरी दुहती है,
एक दिया वहाँ, जहाँ अपना प्यारा
झबरा
दिन-दिन भर सोता है,
एक दिया उस पगडण्डी पर
जो अनजाने कुहरों के पार
डूब जाती है,
एक दिया उस चौराहे पर
जो मन की सारी राहें
विवश छीन लेता है,
एक दिया इस चौखट,
एक दिया उस ताखे,
एक दिया उस बरगद के तले जलाना,
जाना, फिर जाना,
उस तट पर भी जा कर दिया जला आना,
पर पहले अपना यह
आँगन कुछ कहता है,
जाना, फिर जाना !