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"जीवन-दृष्टि / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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:मत माँगो रे जड़ पाहन से
 
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::गा-गा अगणित वंदन के स्वर !
 
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:तन-मन-धन, जीवन-सुख, वैभव
 
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::दुनिया के किस आकर्षण पर ?
 
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:यह मानवता का धर्म नहीं,  
 
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:यह मानवता का मर्म नहीं,
 
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:संघर्षों से घबराकर जो  
 
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:सभय पलायन धारण करता
 
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:जीवन जब है एक समस्या —
 
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:कर्मों का ही नाम तपस्या,
 
:कर्मों का ही नाम तपस्या,

23:59, 28 अगस्त 2008 के समय का अवतरण


जीवन में तुमको होना है
श्रमशील अथक उन्मुक्त निडर !

दीपक की लौ को उकसाकर,
पूजा के सामान जुटाकर,
वरदान अमरता का प्रतिपल
मत माँगो रे जड़ पाहन से
गा-गा अगणित वंदन के स्वर !

इतना भी रे क्या पागलपन,
इतनी भी क्या यह मौन लगन,
अर्पित करते मृत-पुतलों को
तन-मन-धन, जीवन-सुख, वैभव
दुनिया के किस आकर्षण पर ?

यह मानवता का धर्म नहीं,
यह मानवता का मर्म नहीं,
संघर्षों से घबराकर जो
सभय पलायन धारण करता
कह, ‘मिथ्या जग, जीवन नश्वर’!

जीवन जब है एक समस्या —
कर्मों का ही नाम तपस्या,
प्राणों के अंतिमतम पल तक
जग में जमकर संघर्ष करो
बहता जाए जीवन-निर्झर !
1943