भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक ही छत / सुरंगमा यादव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					 ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरंगमा यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} Ca...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)  | 
				|||
| पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
[[Category:हाइकु]]  | [[Category:हाइकु]]  | ||
<poem>  | <poem>  | ||
| − | एक ही छत  | + | 56  | 
| + | कुहू के बोल  | ||
| + | दादुर क्या समझें  | ||
| + | इनका मोल।  | ||
| + | 57  | ||
| + | झील में चाँद  | ||
| + | उमस भरी रात  | ||
| + | नहाने आया।  | ||
| + | 58  | ||
| + | माटी है एक  | ||
| + | एक ही कुम्भकार  | ||
| + | नाना आकार।  | ||
| + | 59  | ||
| + | एक ही ज्योति  | ||
| + | हर घट भीतर  | ||
| + | कैसा अंतर !  | ||
| + | 60  | ||
| + | कहे प्रकृति  | ||
| + | ‘स्व’ और ‘पर’ पर  | ||
| + | हो समदृष्टि।  | ||
| + | 61  | ||
| + | मेघ कहार  | ||
| + | दूर देश से लाया  | ||
| + | वर्षा बहार।  | ||
| + | 62  | ||
| + | नित नवीन  | ||
| + | प्रकृति की सुषमा  | ||
| + | नहीं उपमा।  | ||
| + | 63  | ||
| + | आँचल हरा  | ||
| + | ढूँढ़ती वसुंधरा  | ||
| + | कहीं खो गया।  | ||
| + | 64  | ||
| + | थक के सोया  | ||
| + | दिवस शिशु सम  | ||
| + | साँझ होते ही ।  | ||
| + | 65  | ||
| + | मौन हो गये  | ||
| + | ये विहग वाचाल  | ||
| + | निशीथ काल।  | ||
| + | 66  | ||
| + | '''एक ही छत'''  | ||
कमरों की तरह  | कमरों की तरह  | ||
बँटे हैं मन  | बँटे हैं मन  | ||
</poem>  | </poem>  | ||
00:33, 19 जनवरी 2021 का अवतरण
56
कुहू के बोल
दादुर क्या समझें
इनका मोल।
57
झील में चाँद
उमस भरी रात
नहाने आया।
58
माटी है एक
एक ही कुम्भकार
नाना आकार।
59
एक ही ज्योति
हर घट भीतर
कैसा अंतर !
60
कहे प्रकृति
‘स्व’ और ‘पर’ पर
हो समदृष्टि।
61
मेघ कहार
दूर देश से लाया
वर्षा बहार।
62
नित नवीन
प्रकृति की सुषमा
नहीं उपमा।
63
आँचल हरा
ढूँढ़ती वसुंधरा
कहीं खो गया।
64
थक के सोया
दिवस शिशु सम
साँझ होते ही ।
65
मौन हो गये
ये विहग वाचाल
निशीथ काल।
66
एक ही छत
कमरों की तरह
बँटे हैं मन
	
	