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"मधुकर नहीं मन / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर
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+ | मैं किसे अधिकार दूँगा। | ||
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+ | मैं तुम्हें ही प्यार दूँगा। | ||
− | + | लोलुपी मधुकर नहीं मन | |
− | + | सिर्फ जो मकरंद चाहे, | |
− | + | देह - चन्दन से लिपटकर | |
− | + | गंध औ आनंद चाहे। | |
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− | + | स्वयं से खोया हुआ हूँ | |
− | + | मैं किसे संसार दूँगा। | |
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− | + | स्वाति की इक बूँद पाकर | |
− | + | मणिक का निर्माण होता, | |
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− | + | देव - सा, पाषाण होता। | |
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+ | जो प्रथम अभिसार अर्पित | ||
+ | क्या वही अभिसार दूँगा। | ||
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+ | ज्वाल ठन्डे राख से अब | ||
+ | तुम कहो कैसे मिलेगा, | ||
+ | विरह, दुख, आँसू, दहन का | ||
+ | भाग्य बस मुझसे जुड़ेगा। | ||
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+ | अब नहीं कचनार मुझमें | ||
+ | मैं किसे पतझार दूँगा। | ||
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16:52, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण
इस हृदय में तुम बसे हो
मैं किसे अधिकार दूँगा।
तुम नहीं हो पास फिर भी
मैं तुम्हें ही प्यार दूँगा।
लोलुपी मधुकर नहीं मन
सिर्फ जो मकरंद चाहे,
देह - चन्दन से लिपटकर
गंध औ आनंद चाहे।
स्वयं से खोया हुआ हूँ
मैं किसे संसार दूँगा।
स्वाति की इक बूँद पाकर
मणिक का निर्माण होता,
प्रेम और भक्ति मिले तो
देव - सा, पाषाण होता।
जो प्रथम अभिसार अर्पित
क्या वही अभिसार दूँगा।
ज्वाल ठन्डे राख से अब
तुम कहो कैसे मिलेगा,
विरह, दुख, आँसू, दहन का
भाग्य बस मुझसे जुड़ेगा।
अब नहीं कचनार मुझमें
मैं किसे पतझार दूँगा।