भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मधुकर नहीं मन / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatGeet}}
 
{{KKCatGeet}}
 
<poem>
 
<poem>
पुनः जन्म लेकर आऊँगा।
+
इस हृदय में तुम बसे हो
 +
मैं किसे अधिकार दूँगा।
 +
तुम नहीं हो पास फिर भी
 +
मैं तुम्हें ही प्यार दूँगा।
  
मैंने तुममे चाह जगाई,
+
लोलुपी मधुकर नहीं मन 
प्रेमिल पथ की राह दिखाई,
+
सिर्फ  जो  मकरंद  चाहे,  
पर इसपर अधिकार जो तेरा-  
+
देह - चन्दन  से  लिपटकर 
प्राण ! तुमको न दे पाऊँगा।
+
गंध  औ  आनंद  चाहे।
पुनः जन्म लेकर आऊँगा।।
+
  
कोसों दूर रहो तुम मुझसे,
+
स्वयं  से खोया  हुआ  हूँ
न जाओगी फिर भी हृदय से,
+
मैं  किसे  संसार  दूँगा।
मैंने बस तुमको चाहा है-
+
जीवन भर तुमको चाहूँगा।
+
पुनः जन्म लेकर आऊँगा।।
+
  
अपना-अपना नियम यहाँ है,
+
स्वाति की इक बूँद पाकर
पाषाणों मेँ हृदय कहाँ है,  
+
मणिक का निर्माण होता,
यदि मेरे वश मेँ हो जाए-
+
प्रेम और भक्ति मिले तो
मानव जन्म न दुहराऊँगा।
+
देव - सा, पाषाण  होता।
पुनः जन्म लेकर आऊँगा।।
+
 +
जो प्रथम अभिसार अर्पित
 +
क्या वही अभिसार दूँगा।
 +
 
 +
ज्वाल ठन्डे राख से अब
 +
तुम  कहो  कैसे  मिलेगा,  
 +
विरह, दुख, आँसू, दहन  का
 +
भाग्य  बस  मुझसे  जुड़ेगा।
 +
 
 +
अब  नहीं  कचनार  मुझमें
 +
मैं  किसे  पतझार  दूँगा।
 
</poem>
 
</poem>

16:52, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

इस हृदय में तुम बसे हो
मैं किसे अधिकार दूँगा।
तुम नहीं हो पास फिर भी
मैं तुम्हें ही प्यार दूँगा।

लोलुपी मधुकर नहीं मन
सिर्फ जो मकरंद चाहे,
देह - चन्दन से लिपटकर
गंध औ आनंद चाहे।

स्वयं से खोया हुआ हूँ
मैं किसे संसार दूँगा।

स्वाति की इक बूँद पाकर
मणिक का निर्माण होता,
प्रेम और भक्ति मिले तो
देव - सा, पाषाण होता।
 
जो प्रथम अभिसार अर्पित
क्या वही अभिसार दूँगा।

ज्वाल ठन्डे राख से अब
तुम कहो कैसे मिलेगा,
विरह, दुख, आँसू, दहन का
भाग्य बस मुझसे जुड़ेगा।

अब नहीं कचनार मुझमें
मैं किसे पतझार दूँगा।