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"प्रेमपत्र को विदाई / अलेक्सान्दर पूश्किन" के अवतरणों में अंतर

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विदा, प्रिय प्रेमपत्र, विदा, यह उसका आदेश था
 
विदा, प्रिय प्रेमपत्र, विदा, यह उसका आदेश था
 
 
तुम्हें जला दूँ मैं तुरन्त ही यह उसका संदेश था
 
तुम्हें जला दूँ मैं तुरन्त ही यह उसका संदेश था
 
 
   
 
   
 
कितना मैंने रोका ख़ुद को कितनी देर न चाहा
 
कितना मैंने रोका ख़ुद को कितनी देर न चाहा
 
 
पर उसके अनुरोध ने, कोई शेष न ओड़ी राह
 
पर उसके अनुरोध ने, कोई शेष न ओड़ी राह
 
 
हाथों ने मेरे झोंक दिया मेरी ख़ुशी को आग में
 
हाथों ने मेरे झोंक दिया मेरी ख़ुशी को आग में
 
 
प्रेमपत्र वह लील लिया सुर्ख़ लपटों के राग ने
 
प्रेमपत्र वह लील लिया सुर्ख़ लपटों के राग ने
 
 
   
 
   
 
अब समय आ गया जलने का, जल प्रेमपत्र जल
 
अब समय आ गया जलने का, जल प्रेमपत्र जल
 
 
है समय यह हाथ मलने का, मन है बहुत विकल
 
है समय यह हाथ मलने का, मन है बहुत विकल
 
 
भूखी ज्वाला जीम रही है तेरे पन्ने एक-एक कर
 
भूखी ज्वाला जीम रही है तेरे पन्ने एक-एक कर
 
 
मेरे दिल की घबराहट भी धीरे से रही है बिखर
 
मेरे दिल की घबराहट भी धीरे से रही है बिखर
 
 
   
 
   
 
क्षण भर को बिजली-सी चमकी, उठने लगा धुँआ
 
क्षण भर को बिजली-सी चमकी, उठने लगा धुँआ
 
 
वह तैर रहा था हवा में, मैं कर रहा था दुआ
 
वह तैर रहा था हवा में, मैं कर रहा था दुआ
 
 
लिफ़ाफ़े पर मोहर लगी थी तुम्हारी अंगूठी की
 
लिफ़ाफ़े पर मोहर लगी थी तुम्हारी अंगूठी की
 
 
लाख पिघल रही थी ऎसे मानो हो वह रूठी-सी
 
लाख पिघल रही थी ऎसे मानो हो वह रूठी-सी
 
 
   
 
   
 
फिर ख़त्म हो गया सब कुछ, पन्ने पड़ गए काले
 
फिर ख़त्म हो गया सब कुछ, पन्ने पड़ गए काले
 
 
बदल गए थे हल्की राख में शब्द प्रेम के मतवाले
 
बदल गए थे हल्की राख में शब्द प्रेम के मतवाले
 
 
पीड़ा तीखी उठी हृदय में औ' उदास हो गया मन
 
पीड़ा तीखी उठी हृदय में औ' उदास हो गया मन
 
 
जीवन भर अब बसा रहेगा मेरे भीतर यह क्षण ।।
 
जीवन भर अब बसा रहेगा मेरे भीतर यह क्षण ।।
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02:17, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण

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»  प्रेमपत्र को विदाई

विदा, प्रिय प्रेमपत्र, विदा, यह उसका आदेश था
तुम्हें जला दूँ मैं तुरन्त ही यह उसका संदेश था
 
कितना मैंने रोका ख़ुद को कितनी देर न चाहा
पर उसके अनुरोध ने, कोई शेष न ओड़ी राह
हाथों ने मेरे झोंक दिया मेरी ख़ुशी को आग में
प्रेमपत्र वह लील लिया सुर्ख़ लपटों के राग ने
 
अब समय आ गया जलने का, जल प्रेमपत्र जल
है समय यह हाथ मलने का, मन है बहुत विकल
भूखी ज्वाला जीम रही है तेरे पन्ने एक-एक कर
मेरे दिल की घबराहट भी धीरे से रही है बिखर
 
क्षण भर को बिजली-सी चमकी, उठने लगा धुँआ
वह तैर रहा था हवा में, मैं कर रहा था दुआ
लिफ़ाफ़े पर मोहर लगी थी तुम्हारी अंगूठी की
लाख पिघल रही थी ऎसे मानो हो वह रूठी-सी
 
फिर ख़त्म हो गया सब कुछ, पन्ने पड़ गए काले
बदल गए थे हल्की राख में शब्द प्रेम के मतवाले
पीड़ा तीखी उठी हृदय में औ' उदास हो गया मन
जीवन भर अब बसा रहेगा मेरे भीतर यह क्षण ।।