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"कोई ऐसी सज़ा / नमन दत्त" के अवतरणों में अंतर
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− | + | ग़म न होता, तो मर गये होते। | |
− | + | काश अपने शहर में गर होते, | |
− | + | दिन ढले हम भी घर गये होते। | |
− | + | इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना | |
− | + | सारे नासूर भर गये होते। | |
− | + | दूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं, | |
− | + | क्यूँ अबस बालो-पर गये होते। | |
− | + | ग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया, | |
− | + | पार वरना उतर गये होते। | |
− | + | कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में, | |
− | + | दिल न जाते, तो सर गये होते। | |
− | + | बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना | |
− | + | ख़्वाब बनकर बिखर गये होते। | |
− | + | हम भी "साबिर" के साथ, रात कभी | |
− | + | ख़्वाहिशों के नगर गये होते। | |
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23:04, 24 मई 2020 के समय का अवतरण
जाने कब के बिखर गये होते।
ग़म न होता, तो मर गये होते।
काश अपने शहर में गर होते,
दिन ढले हम भी घर गये होते।
इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना
सारे नासूर भर गये होते।
दूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं,
क्यूँ अबस बालो-पर गये होते।
ग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया,
पार वरना उतर गये होते।
कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते।
बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना
ख़्वाब बनकर बिखर गये होते।
हम भी "साबिर" के साथ, रात कभी
ख़्वाहिशों के नगर गये होते।