भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कविता-6 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: रास्‍ते में जब हमारी आंखें मिलती हैं मैं सोचता हूं मुझे उसे कुछ क...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
रास्‍ते में जब हमारी आंखें मिलती हैं
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर 
 +
|संग्रह=
 +
}}<poem>रास्‍ते में जब हमारी आंखें मिलती हैं
 
मैं सोचता हूं मुझे उसे कुछ कहना था
 
मैं सोचता हूं मुझे उसे कुछ कहना था
 
पर वह गुजर जाती है
 
पर वह गुजर जाती है
पंक्ति 16: पंक्ति 20:
 
वह बात जो मुझे उसे बतानी थी ।  
 
वह बात जो मुझे उसे बतानी थी ।  
  
अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल
+
'''अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल
 +
</poem>

19:25, 23 जून 2009 का अवतरण

रास्‍ते में जब हमारी आंखें मिलती हैं
मैं सोचता हूं मुझे उसे कुछ कहना था
पर वह गुजर जाती है
और हर लहर पर बारंबार टकराती
एक नौका की तरह
मुझे कंपाती रहती है-
वह बात जो
मुझे उससे कहनी थी
यह पतझड़ में बादलों की अंतहीन तलाश
की तरह है या संध्‍या में खिले फूलों सा
सूर्यास्‍त में अपनी खुशबू खोना है

जुगनू की तरह मेरे हृदय में
भुकभुकाती रहती है
निराशा के झुटपुटे में अपना अर्थ तलाशती-
वह बात जो मुझे उसे बतानी थी ।

अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल