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"रिश्ता /अनामिका" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मेरा उससे रिश्ता बस इतना था | |
− | + | कि हम एक पंसारी के गाहक थे | |
− | + | नए मुहल्ले में! | |
− | + | वह मेरे पहले से बैठी थी- | |
− | + | टॉफी के मर्तबान से टिककर | |
− | + | स्टूल के राजसिंहासन पर! | |
− | + | मुझसे भी ज़्यादा | |
− | + | थकी दिखती थी वह | |
− | + | फिर भी वह हंसी! | |
− | + | उस हँसी का न तर्क था, | |
− | + | न व्याकरण, | |
− | + | न सूत्र, | |
− | + | न अभिप्राय! | |
− | + | वह ब्रह्म की हँसी थी। | |
− | + | उसने फिर हाथ भी बढ़ाया, | |
− | + | और मेरी शॉल का सिरा उठाकर | |
− | + | उसके सूत किए सीधे | |
− | + | जो बस की किसी कील से लगकर | |
+ | भृकुटि की तरह सिकुड़ गए थे। | ||
+ | पल भर को लगा-उसके उन झुके कंधों से | ||
+ | मेरे भन्नाये हुए सिर का | ||
+ | बेहद पुराना है बहनापा। | ||
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17:21, 29 मई 2020 के समय का अवतरण
वह बिल्कुल अनजान थी!
मेरा उससे रिश्ता बस इतना था
कि हम एक पंसारी के गाहक थे
नए मुहल्ले में!
वह मेरे पहले से बैठी थी-
टॉफी के मर्तबान से टिककर
स्टूल के राजसिंहासन पर!
मुझसे भी ज़्यादा
थकी दिखती थी वह
फिर भी वह हंसी!
उस हँसी का न तर्क था,
न व्याकरण,
न सूत्र,
न अभिप्राय!
वह ब्रह्म की हँसी थी।
उसने फिर हाथ भी बढ़ाया,
और मेरी शॉल का सिरा उठाकर
उसके सूत किए सीधे
जो बस की किसी कील से लगकर
भृकुटि की तरह सिकुड़ गए थे।
पल भर को लगा-उसके उन झुके कंधों से
मेरे भन्नाये हुए सिर का
बेहद पुराना है बहनापा।