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"आस जोगन / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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08:32, 5 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

आस जब जोगन हो जाए।
कण्टकपथ यौवन हो जाए।
जहर मौन हो- मन पीता है;
पीड़ामय जीवन हो जाए।

पलक-द्वार जब वह न खोले।
पीर जिया की अश्रु न बोले।
तब यह समझो घट रीता है;
जीवन इसमें रस न घोले।

कठिन हो जब मन समझाना।
विकल जी की प्यास बुझाना।
मृत्यु सरल, कठिन है जीवन;
क्या साँस का आना-जाना?