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"नया ज़माना / बैर्तोल्त ब्रेष्त / सुरेश सलिल" के अवतरणों में अंतर

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एक से दूसरे मुँह तक फैला दी गई थी बुद्धिमानी ।
 
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22:37, 16 दिसम्बर 2021 का अवतरण

नया ज़माना यक्-ब-यक् नहीं शुरू होता ।
मेरे दादा पहले ही एक नए ज़माने में रह रहे थे
मेरा पोता शायद अब भी पुराने ज़माने में रह रहा होगा ।

नया गोश्त पुराने काँटे से खाया जाता है ।

वे पहली कारें नहीं थीं
न वे टैंक
हमारी छतों पर दिखने वाले
वे हवाई जहाज़ भी नहीं
न वे बमवर्षक,

नए ट्राँसमीटरों से आईं मूर्खताएँ पुरानी ।
एक से दूसरे मुँह तक फैला दी गई थी बुद्धिमानी ।

1943-43
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल