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"उनकी चाहत में / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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06:13, 27 जून 2020 के समय का अवतरण
ज़िंदगी बिता दी उनकी चाहत में हमने
किसी भी फरमाइश को इनकार न कर सकी।
हर रात को चाँद के माथे पर सिलवटें गहरी,
आईना देखा मगर खुद से प्यार न कर सकी।
मैं जानती थी मंशाहत कुटिल मुस्कान की,
लेकिन न जाने क्यों; तकरार न कर सकी।
मेरे दमित चेहरे में खूबसूरत दिल है,
ख्वाहिशें हैं; मगर इसे दाग़दार न कर सकी।