"बारह बरस पीछै (विरह -गीत) / खड़ी बोली" के अवतरणों में अंतर
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बारह बरस पीछै राजा घर आए <br> | बारह बरस पीछै राजा घर आए <br> | ||
बैठो न बैठो मूढ़ला बिछाय हो …<br> | बैठो न बैठो मूढ़ला बिछाय हो …<br> | ||
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-क्या कुछ तो रे जिज्जा लाए हो कमाए कै<br> | -क्या कुछ तो रे जिज्जा लाए हो कमाए कै<br> | ||
क्या कुछ लाए हो बसाए कै……<br> | क्या कुछ लाए हो बसाए कै……<br> | ||
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-पान सौ रुपए रै सालै ल्याया कमाए कै<br> | -पान सौ रुपए रै सालै ल्याया कमाए कै<br> | ||
ढ़ाई सौ की घड़ी बँधाई है …<br> | ढ़ाई सौ की घड़ी बँधाई है …<br> | ||
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-भूरी भैंस का री अम्मा दूध काढ़ि<br>यो | -भूरी भैंस का री अम्मा दूध काढ़ि<br>यो | ||
− | -हारे मैं खीर | + | -हारे मैं खीर रँधायो री…<br> |
-जितना पतीले मैं दूध घणा है<br> | -जितना पतीले मैं दूध घणा है<br> | ||
-उतना ही जहर मिलाइयो री…<br> | -उतना ही जहर मिलाइयो री…<br> | ||
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-चलो जिज्जा जी भोजन जीम लो <br> | -चलो जिज्जा जी भोजन जीम लो <br> | ||
करी रसोई ठण्डी हो गई है .… <br> | करी रसोई ठण्डी हो गई है .… <br> | ||
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कोट्ठे अन्दर खड़ी रै कामनी<br> | कोट्ठे अन्दर खड़ी रै कामनी<br> | ||
वहीं से हाथ हिला रही हो …<br> | वहीं से हाथ हिला रही हो …<br> | ||
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-इस भोजन को पति मत जिमियो<br> | -इस भोजन को पति मत जिमियो<br> | ||
सर पै काल घोर रह्या हो …<br> | सर पै काल घोर रह्या हो …<br> | ||
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-आज तो साले जी मैं पुन्नो का बरती<br> | -आज तो साले जी मैं पुन्नो का बरती<br> | ||
कल को ही रोट्टी खाएँगे…<br> | कल को ही रोट्टी खाएँगे…<br> | ||
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-चलो जिज्जा जी घुमण चाल्लैं<br> | -चलो जिज्जा जी घुमण चाल्लैं<br> | ||
बनखण्ड के हो बीच रै …<br> | बनखण्ड के हो बीच रै …<br> | ||
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इक बण लाख्या दूजा बण लाख्या<br> | इक बण लाख्या दूजा बण लाख्या<br> | ||
तीजै मैं कुल्हाड़ी उठाई हो …<br> | तीजै मैं कुल्हाड़ी उठाई हो …<br> | ||
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तीजी कुल्हाड़ी साला मारण लाग्या<br> | तीजी कुल्हाड़ी साला मारण लाग्या<br> | ||
कर दिया सीस अलग हो<br> | कर दिया सीस अलग हो<br> | ||
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-सखी –सहेलियाँ कट्ठी होय कै<br> | -सखी –सहेलियाँ कट्ठी होय कै<br> | ||
चलो बन खण्ड के बीच हो …<br> | चलो बन खण्ड के बीच हो …<br> | ||
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इक बण लाख्या दूजा बण लाख्या<br> | इक बण लाख्या दूजा बण लाख्या<br> | ||
तीजे मैं लाश पति की हो…<br> | तीजे मैं लाश पति की हो…<br> | ||
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-क्या तो पति जी तुमैं गोद उठा लूँ हो <br> | -क्या तो पति जी तुमैं गोद उठा लूँ हो <br> | ||
क्या तुम्हैं छतियाँ से ल्यालूँ हो…<br> | क्या तुम्हैं छतियाँ से ल्यालूँ हो…<br> | ||
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परे बगैलूँ भतीजों को हो…<br> | परे बगैलूँ भतीजों को हो…<br> | ||
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15:46, 18 सितम्बर 2008 का अवतरण
विरह गीत (कथात्मक)
(बड़ी –बूढ़ी औरतें इस कथात्मक गीत को गाने से मना करती हैं ।इस गीत की करुणा हृदय को पिंघलाने वाली है ।)
बारह बरस पीछै राजा घर आए
बैठो न बैठो मूढ़ला बिछाय हो …
-क्या कुछ तो रे जिज्जा लाए हो कमाए कै
क्या कुछ लाए हो बसाए कै……
-पान सौ रुपए रै सालै ल्याया कमाए कै
ढ़ाई सौ की घड़ी बँधाई है …
-भूरी भैंस का री अम्मा दूध काढ़ि
यो
-हारे मैं खीर रँधायो री…
-जितना पतीले मैं दूध घणा है
-उतना ही जहर मिलाइयो री…
-चलो जिज्जा जी भोजन जीम लो
करी रसोई ठण्डी हो गई है .…
कोट्ठे अन्दर खड़ी रै कामनी
वहीं से हाथ हिला रही हो …
-इस भोजन को पति मत जिमियो
सर पै काल घोर रह्या हो …
-आज तो साले जी मैं पुन्नो का बरती
कल को ही रोट्टी खाएँगे…
-चलो जिज्जा जी घुमण चाल्लैं
बनखण्ड के हो बीच रै …
इक बण लाख्या दूजा बण लाख्या
तीजै मैं कुल्हाड़ी उठाई हो …
पहली कुल्हाड़ी साला मारण लाग्या
हो लिये पेड़ों की ओट हो…
दूजी कुल्हाड़ी साला मारण लाग्या
ले ली हाथों की ओट हो…
तीजी कुल्हाड़ी साला मारण लाग्या
कर दिया सीस अलग हो
-सखी –सहेलियाँ कट्ठी होय कै
चलो बन खण्ड के बीच हो …
इक बण लाख्या दूजा बण लाख्या
तीजे मैं लाश पति की हो…
-क्या तो पति जी तुमैं गोद उठा लूँ हो
क्या तुम्हैं छतियाँ से ल्यालूँ हो…
-जा रे बीरा तेरा नास रे होइयो
चढ़ती बेल उतारी हो…
किसकी तो रे बीरा सेज बिछाऊँ
किसके लाल खिलाऊँ हो…
-बीरा की ऐ ओब्बो सेज बिछाओ
भतीजे गोद खिलाओ हे…
-आग लगाऊँ बीरा तेरी सेज मैं
परे बगैलूँ भतीजों को हो…
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