भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अभिरंजित काया / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह=मन के...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=कविता भट्ट
 
|रचनाकार=कविता भट्ट
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=मन के कागज़ पर / कविता भट्ट
+
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

08:33, 5 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

'रात की रानी' महक रही थी,
पिय आलिंगन बहक रही थी।

सपने सजाए, मधु-गीत गाए,
निज अधर धरे नैना उलझाए।

रख हृदय पर पिय के शीश।
माँगा अंजुरीभर शुभाशीष।

साँस- साँस तक नित प्रसार,
अभिरंजित काया अभिसार।

अहं मिटाया, किया समर्पण,
झाँका प्रिय आँखों में दर्पण।

नित बैठे पिय क्यों अहं धरे?
नेहडोरी टूटी औ सपने बिखरे।

न जाने थी कुटिल कौन घड़ी?
सिसकी रोकर वह मौन बड़ी।

न भावे- कहाँ वे मन-वचन गए।
क्यों तन-मन-जीवन रुदन भए।

दिन चार जीवित, बँधो भुजपाश,
तन-मन इक कर, झूलें आकाश।