भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घंटा / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत | |
− | + | |संग्रह= | |
− | + | }} | |
− | + | ||
नभ की है उस नीली चुप्पी पर<br> | नभ की है उस नीली चुप्पी पर<br> | ||
घंटा है एक टंगा सुन्दर,<br> | घंटा है एक टंगा सुन्दर,<br> |
20:38, 25 मई 2009 का अवतरण
नभ की है उस नीली चुप्पी पर
घंटा है एक टंगा सुन्दर,
जो घडी घडी मन के भीतर
कुछ कहता रहता बज बज कर।
परियों के बच्चों से प्रियतर,
फैला कोमल ध्वनियों के पर
कानों के भीतर उतर उतर
घोंसला बनाते उसके स्वर।
भरते वे मन में मधुर रोर
"जागो रे जागो, काम चोर!
डूबे प्रकाश में दिशा छोर
अब हुआ भोर, अब हुआ भोर!"
"आई सोने की नई प्रात
कुछ नया काम हो, नई बात,
तुम रहो स्वच्छ मन, स्वच्छ गात,
निद्रा छोडो, रे गई, रात!