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"एक सपना यह भी / चन्द्रकान्त देवताले" के अवतरणों में अंतर

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सुख से पुलकने से नहीं
 
सुख से पुलकने से नहीं
 
 
रचने-खटने की थकान से सोई हुई है स्त्री
 
रचने-खटने की थकान से सोई हुई है स्त्री
 
  
 
सोई हुई है जैसे उजड़कर गिरी सूखे पेड़ की टहनी
 
सोई हुई है जैसे उजड़कर गिरी सूखे पेड़ की टहनी
 
 
अब पड़ी पसर कर
 
अब पड़ी पसर कर
 
  
 
मिलता जो सुख वह जागती अभी तक भी
 
मिलता जो सुख वह जागती अभी तक भी
 
 
महकती अंधेरे में फूल की तरह
 
महकती अंधेरे में फूल की तरह
 
 
या सोती भी होती तो होठों पर या भौंहों में
 
या सोती भी होती तो होठों पर या भौंहों में
 
 
तैरता-अटका होता
 
तैरता-अटका होता
 
 
हँसी - खुशी का एक टुकड़ा बचा-खुचा कोई
 
हँसी - खुशी का एक टुकड़ा बचा-खुचा कोई
 
  
 
पढ़ते-लिखते बीच में जब भी नज़र पड़ती उस पर कभी
 
पढ़ते-लिखते बीच में जब भी नज़र पड़ती उस पर कभी
 
 
देख उसे खुश जैसा बिन कुछ सोचे
 
देख उसे खुश जैसा बिन कुछ सोचे
 
 
हँसना बिन आवाज़ में भी
 
हँसना बिन आवाज़ में भी
 
  
 
नींद में हँसते देखना उसे मेरा एक सपना यह भी
 
नींद में हँसते देखना उसे मेरा एक सपना यह भी
 
 
पर वह तो
 
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माथे की सिलवटें तक नहीं मिटा पाती
 
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सोकर भी
 
सोकर भी
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17:56, 10 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

सुख से पुलकने से नहीं
रचने-खटने की थकान से सोई हुई है स्त्री

सोई हुई है जैसे उजड़कर गिरी सूखे पेड़ की टहनी
अब पड़ी पसर कर

मिलता जो सुख वह जागती अभी तक भी
महकती अंधेरे में फूल की तरह
या सोती भी होती तो होठों पर या भौंहों में
तैरता-अटका होता
हँसी - खुशी का एक टुकड़ा बचा-खुचा कोई

पढ़ते-लिखते बीच में जब भी नज़र पड़ती उस पर कभी
देख उसे खुश जैसा बिन कुछ सोचे
हँसना बिन आवाज़ में भी

नींद में हँसते देखना उसे मेरा एक सपना यह भी
पर वह तो
माथे की सिलवटें तक नहीं मिटा पाती
सोकर भी