"अपने प्रेम को / अष्टभुजा शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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प्रेमी जीव हूँ मैं | प्रेमी जीव हूँ मैं | ||
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जबकि दुनिया प्रेम की ही विरोधी है | जबकि दुनिया प्रेम की ही विरोधी है | ||
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बहुत तस्कर हैं प्रेम के | बहुत तस्कर हैं प्रेम के | ||
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बहुत हैं ख़रीददार | बहुत हैं ख़रीददार | ||
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कौन-सा बैंक अपने लाकर में रखेगा इसे? | कौन-सा बैंक अपने लाकर में रखेगा इसे? | ||
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समुद्र में डाल दूँ तो | समुद्र में डाल दूँ तो | ||
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मैं ही कैसे निकालूंगा बाद में | मैं ही कैसे निकालूंगा बाद में | ||
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किसी तारे में | किसी तारे में | ||
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उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दूँ | उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दूँ | ||
− | + | कल कैसे खोज पाऊँगा, मैं ही, | |
− | कल कैसे खोज | + | |
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आसमान देखकर | आसमान देखकर | ||
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एक दिन तो प्रेम | एक दिन तो प्रेम | ||
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मधु से निकलकर चुपचाप | मधु से निकलकर चुपचाप | ||
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मिट्टी के तेल में बैठा मिला | मिट्टी के तेल में बैठा मिला | ||
− | + | एक दिन चाँदनी में | |
− | एक दिन | + | |
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किसी पादप की छाया देखकर | किसी पादप की छाया देखकर | ||
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भ्रम हो गया मुझे | भ्रम हो गया मुझे | ||
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कि सो रहा है प्रेम | कि सो रहा है प्रेम | ||
कुछ दिनों के लिए उसे रख दिया था | कुछ दिनों के लिए उसे रख दिया था | ||
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तुम्हारी आँखों में | तुम्हारी आँखों में | ||
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कुछ दिनों के लिए | कुछ दिनों के लिए | ||
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तुम्हारी हथेलियों में | तुम्हारी हथेलियों में | ||
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रख दिया था उसे | रख दिया था उसे | ||
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कुछ दिनों के लिए | कुछ दिनों के लिए | ||
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बिछा दिया था प्रेम को | बिछा दिया था प्रेम को | ||
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पलंग की तरह | पलंग की तरह | ||
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जिसके गोड़वारी (पैताने)मैं था | जिसके गोड़वारी (पैताने)मैं था | ||
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और मुड़वारी (सिरहाने)तुम | और मुड़वारी (सिरहाने)तुम | ||
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जब निकाल दिया तुमने अपने यहाँ से | जब निकाल दिया तुमने अपने यहाँ से | ||
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प्रेम को | प्रेम को | ||
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वह मुझ से मिला | वह मुझ से मिला | ||
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जैसे निकाल दिया गया आदमी | जैसे निकाल दिया गया आदमी | ||
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मैं उसे अपने साथ लाया | मैं उसे अपने साथ लाया | ||
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उसके हाथ-पैर धुलाए | उसके हाथ-पैर धुलाए | ||
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उसे जलपान कराया | उसे जलपान कराया | ||
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बहलाया-सहलाया | बहलाया-सहलाया | ||
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कुछ दिनों बाद उसे | कुछ दिनों बाद उसे | ||
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अपने अन्तर्जगत का कोना-कोना दिखलाया | अपने अन्तर्जगत का कोना-कोना दिखलाया | ||
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अपने साथ रहते-रहते | अपने साथ रहते-रहते | ||
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जब कुछ-कुछ ऊबने लगा प्रेम | जब कुछ-कुछ ऊबने लगा प्रेम | ||
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तो उसे मैंने | तो उसे मैंने | ||
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बालू भरी बाल्टियों की तरह | बालू भरी बाल्टियों की तरह | ||
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जगह-जगह रख दिया | जगह-जगह रख दिया | ||
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नफ़रत की आग बुझाने के लिए | नफ़रत की आग बुझाने के लिए | ||
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आग बुझाते-बुझाते एक दिन | आग बुझाते-बुझाते एक दिन | ||
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वह स्वयं झुलसा हुआ आया | वह स्वयं झुलसा हुआ आया | ||
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दोनों पहिए पंचर साइकिल की तरह लड़खड़ाता | दोनों पहिए पंचर साइकिल की तरह लड़खड़ाता | ||
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उसी दिन से | उसी दिन से | ||
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मैंने कहीं नहीं जाने दिया अन्यत्र | मैंने कहीं नहीं जाने दिया अन्यत्र | ||
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अपने प्रेम को | अपने प्रेम को | ||
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शब्दों में रखकर | शब्दों में रखकर | ||
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हो गया निश्चिन्त | हो गया निश्चिन्त | ||
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कि उसके लिए | कि उसके लिए | ||
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कविता से आदर्श और अच्छी | कविता से आदर्श और अच्छी | ||
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दूसरी कोई जगह नहीं | दूसरी कोई जगह नहीं | ||
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18:05, 10 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
प्रेमी जीव हूँ मैं
जबकि दुनिया प्रेम की ही विरोधी है
बहुत तस्कर हैं प्रेम के
बहुत हैं ख़रीददार
कौन-सा बैंक अपने लाकर में रखेगा इसे?
समुद्र में डाल दूँ तो
मैं ही कैसे निकालूंगा बाद में
किसी तारे में
उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दूँ
कल कैसे खोज पाऊँगा, मैं ही,
आसमान देखकर
एक दिन तो प्रेम
मधु से निकलकर चुपचाप
मिट्टी के तेल में बैठा मिला
एक दिन चाँदनी में
किसी पादप की छाया देखकर
भ्रम हो गया मुझे
कि सो रहा है प्रेम
कुछ दिनों के लिए उसे रख दिया था
तुम्हारी आँखों में
कुछ दिनों के लिए
तुम्हारी हथेलियों में
रख दिया था उसे
कुछ दिनों के लिए
बिछा दिया था प्रेम को
पलंग की तरह
जिसके गोड़वारी (पैताने)मैं था
और मुड़वारी (सिरहाने)तुम
जब निकाल दिया तुमने अपने यहाँ से
प्रेम को
वह मुझ से मिला
जैसे निकाल दिया गया आदमी
मैं उसे अपने साथ लाया
उसके हाथ-पैर धुलाए
उसे जलपान कराया
बहलाया-सहलाया
कुछ दिनों बाद उसे
अपने अन्तर्जगत का कोना-कोना दिखलाया
अपने साथ रहते-रहते
जब कुछ-कुछ ऊबने लगा प्रेम
तो उसे मैंने
बालू भरी बाल्टियों की तरह
जगह-जगह रख दिया
नफ़रत की आग बुझाने के लिए
आग बुझाते-बुझाते एक दिन
वह स्वयं झुलसा हुआ आया
दोनों पहिए पंचर साइकिल की तरह लड़खड़ाता
उसी दिन से
मैंने कहीं नहीं जाने दिया अन्यत्र
अपने प्रेम को
शब्दों में रखकर
हो गया निश्चिन्त
कि उसके लिए
कविता से आदर्श और अच्छी
दूसरी कोई जगह नहीं