भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"झील / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" | |रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | + | <poem> | |
मत छुओ इस झील को। | मत छुओ इस झील को। | ||
कंकड़ी मारो नहीं, | कंकड़ी मारो नहीं, | ||
पंक्ति 11: | पंक्ति 14: | ||
खेल में तुमको पुलक-उन्मेष होता है, | खेल में तुमको पुलक-उन्मेष होता है, | ||
− | लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है। | + | लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है। |
</poem> | </poem> |
12:35, 27 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
मत छुओ इस झील को।
कंकड़ी मारो नहीं,
पत्तियाँ डारो नहीं,
फूल मत बोरो।
और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो।
खेल में तुमको पुलक-उन्मेष होता है,
लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है।